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गुनाहगार हूँ ऐसा रह-ए-नजात में हूँ - सिराज लखनवी कविता - Darsaal

गुनाहगार हूँ ऐसा रह-ए-नजात में हूँ

गुनाहगार हूँ ऐसा रह-ए-नजात में हूँ

मैं ख़ुद चराग़-ब-कफ़ हर अँधेरी रात में हूँ

शुऊ'र गुम हुआ दीवानगी है खोई हुई

ख़ुदा ही जाने मैं किस मंज़िल-ए-हयात में हूँ

तजल्ली-ए-पस-ए-पर्दा ज़रा तवक़्क़ुफ़ कर

अभी तो गर्म-ए-नज़र बज़्म-ए-मुम्किनात में हूँ

सवाल एक नज़र का है रद न कर ऐ दोस्त

गदा-ए-ख़ाक-बसर राह-ए-इलतिफ़ात में हूँ

हरीफ़-ए-जल्वा भी इक रोज़ हूँगा सब्र करो

अभी तो अपनी बहिश्त-ए-तसव्वुरात में हूँ

है तेरी याद का आलम भी कितना दिल-आवेज़

समझ रहा हूँ किसी और काएनात में हूँ

किसी के दिल का सुकूँ हूँ किसी के दिल की ख़लिश

ज़मीर-ए-वक़्त हूँ और क़ल्ब-ए-काएनात में हूँ

है मेरे हाथ में भी दिल का इक बुझा सा दिया

कुछ आँसुओं की सजाई हुई बरात में हूँ

हूँ ख़ुद ही आईना-ए-हाल क्या बताऊँ 'सिराज'

मैं किस का नक़्श-ए-क़दम अरसा-ए-हयात में हूँ

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In Hindi By Famous Poet Siraj Lakhnavi. is written by Siraj Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Siraj Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.