Ghazals of Siraj Lakhnavi
नाम | सिराज लखनवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Siraj Lakhnavi |
जन्म की तारीख | 1894 |
मौत की तिथि | 1968 |
यूँ सुबुक-दोश हूँ जीने का भी इल्ज़ाम नहीं
ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए
ये जब्र-ए-ज़िंदगी न उठाएँ तो क्या करें
ये इंक़लाब भी ऐ दौर-ए-आसमाँ हो जाए
वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से
तुझे पा के तुझ से जुदा हो गए हम
क़िस्मत से लड़ती हैं निगाहें
क़दम तो रख मंज़िल-ए-वफ़ा में बिसात खोई हुई मिलेगी
निगाह-ए-यार यूँही और चंद पैमाने
न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है
मुझे अब हवा-ए-चमन नहीं कि क़फ़स में गूना क़रार है
मिटा सा हर्फ़ हूँ बिगड़ी हुई सी बात हूँ मैं
मिला-दिला सही इक ख़ुश्क हार बाक़ी है
मदद ऐ ख़याल-ए-माज़ी ज़रा आइना उठाना
लिया जन्नत में भी दोज़ख़ का सहारा हम ने
ख़याल-ए-दोस्त न मैं याद-ए-यार में गुम हूँ
काफ़िरी में भी जो चाहत होगी
जलती रहना शम-ए-हयात
ईमाँ की नुमाइश है सज्दे हैं कि अफ़्साने
हर लग़्ज़िश-ए-हयात पर इतरा रहा हूँ मैं
गुनाहगार हूँ ऐसा रह-ए-नजात में हूँ
फ़ितरत-ए-इश्क़ गुनहगार हुई जाती है
दुनिया का न उक़्बा का कोई ग़म नहीं सहते
बे-समझे-बूझे मोहब्बत की इक काफ़िर ने ईमान लिया
अश्क-ए-हसरत में क्यूँ लहू है अभी
अजब सूरत से दिल घबरा रहा है
अच्छा क़िसास लेना फिर आह-ए-आतिशीं से
अब न कुछ सुनना न सुनाना रात गुज़रती जाती है
अब इतनी अर्ज़ां नहीं बहारें वो आलम-ए-रंग-ओ-बू कहाँ है
आँखों में आज आँसू फिर डबडबा रहे हैं