सनम जब चीरा-ए-ज़र-तार बाँधे
सनम जब चीरा-ए-ज़र-तार बाँधे
झलक सीं कूचा-ओ-बाज़ार बाँधे
हज़ारों तेग़-बंदों कूँ करे क़त्ल
ख़म-ए-अबरू की जब तलवार बाँधे
जो देखे एक-दम ज़ाहिद तिरी ज़ुल्फ़
गले में ज़ोहद का ज़ुन्नार बाँधे
तलब के उक़्दा-ए-मुश्किल कूँ खोले
जो कोशिश की कमर यकबार बाँधे
जो कुइ ग़म का हिसार-ए-क़ल्ब चाहे
ग़ुबार-ए-आह सीं दीवार बाँधे
जो देखे गुल-रुख़ों को को ला-उबाली
बजा है गर लब-ए-इज़हार बाँधे
'सिराज' आँखें किया है ग़ैर सीं बंद
कि ता दिल में ख़याल-ए-यार बाँधे
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