जिस कूँ पियो के हिज्र का बैराग है
जिस कूँ पियो के हिज्र का बैराग है
आह का मज्लिस में उस की राग है
क्यूँ न होए दिल जल के ख़ाकिस्तर नमन
आतिशीं-रू की मोहब्बत आग है
ऐ दिल उस के ज़हर सें वसवास कर
ज़ुल्फ़ नीं है बल्कि काला नाग है
जब सें लाया इश्क़ ने फ़ौज-ए-जुनूँ
अक़्ल के लश्कर में भागा भाग है
ताला-ए-सिकंदरी रखता 'सिराज'
रू-ब-रू आईना-रू क्या भाग है
(487) Peoples Rate This