जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का
जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का
बंदा-ए-बे-ज़र-ओ-दीनार हूँ किन का उन का
सब्र के बाग़ के मंडवे से झड़ा हूँ जियूँ फूल
अब तो लाचार गले हार हूँ किन का उन का
हौज़-ए-कौसर की नहीं चाह-ए-ज़नख़दाँ की क़सम
तिश्ना-ए-शर्बत-ए-दीदार हूँ किन का उन का
लब-ओ-रुख़्सार के गुल-क़ंद सीं लाज़िम है इलाज
दिल के आज़ार सीं बीमार हूँ किन का उन का
मुद्दतें हुईं कि हुआ ख़ाना-ए-ज़ंजीर ख़राब
बस्ता-ए-ज़ुल्फ़-ए-गिरह-दार हूँ किन का उन का
तिश्ना-ए-मर्ग कूँ है आब-ए-सुराही दम-ए-तेग़
बिस्मिल-ए-अबरू-ए-ख़मदार हूँ किन का उन का
नाहक़ इस संग-दिली सीं मुझे देते हैं शिकस्त
मैं तो आईना-ए-सरकार हूँ किन का उन का
गुलशन-ए-वस्ल में रहता हूँ ग़ज़ल-ख़्वान-ए-फ़िराक़
अंदलीब-ए-गुल-ए-रुख़्सार हूँ किन का उन का
मैं कहा रहम पतंगों पे कर ऐ जान-ए-'सिराज'
तब कहा शम्-ए-शब-तार हूँ किन का उन का
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