इश्क़ ने ख़ूँ किया है दिल जिस का
इश्क़ ने ख़ूँ किया है दिल जिस का
पारा-ए-लअल अश्क है तिस का
याद कर कर अमल में लाता हूँ
हर सुख़न इश्क़ के मुदर्रिस का
चश्म-ए-साक़ी का वस्फ़ लिखता हूँ
ले क़लम हात शाख़-ए-नर्गिस का
ग़म ने पीला किया हमारा रंग
कीमिया-गर ने ज़र किया मिस का
ज़ुल्फ़ दिखला के दिल लपेट लिया
अब परेशाँ है हाल मज्लिस का
तुम ने पाए हो हुस्न की दौलत
पूछते कब हो हाल मुफ़्लिस का
बे-कसी मुझ सीं आश्ना है 'सिराज'
नहीं तो आलम में कौन है किस का
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