इश्क़ में आ कि अक़्ल कूँ खोनाँ
इश्क़ में आ कि अक़्ल कूँ खोनाँ
बा-ख़िरद हो के बे-ख़िरद होनाँ
फ़र्श-ए-मख़मल सीं मुझ कूँ बेहतर है
ग़म के काँटों की सेज पर सोनाँ
अब्र-ए-रहमत है बीज वहदत का
कुंज-ए-मख़्फ़ी के खेत में बोनाँ
ख़ंदा-ए-गुल है गिर्या-ए-शबनम
है हँसी यार की मिरा रोनाँ
रूप दरसन दिखा ऐ सीमीं-तन
नहीं तो जाता है हात सें सोनाँ
गर्द-ए-ग़म सीं जो दिल हुआ मेला
अपने आँसू के आब सीं धोनाँ
शोख़ जादू-अदा ने मुझ पे 'सिराज'
गर्दिश-ए-चश्म सूँ किया टोनाँ
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