हमारे पास जानाँ आन पहुँचा
हमारे पास जानाँ आन पहुँचा
दिल-ए-बे-जान कूँ अब जान पहुँचा
न होवे क्यूँ शोर दिल की बांसली में
मलाहत का सलोना कान पहुँचा
कमाँ-अबरू की हर तिरछी निगह सीं
जिगर के तोड़ने कूँ बान पहुँचा
दिखाया मुसहफ़-ए-रुख़्सार अपनाँ
हमारा दीन और ईमान पहुँचा
मुझे कह काकरेज़ी चीरे वाले
कि वक़्त-ए-सैर-ए-ना-फ़रमान पहुँचा
मय ओ जाम ओ गुल-ए-मुतरिब है मौजूद
बहार-ए-वस्ल का सामान पहुँचा
दिल-ए-मुफ़्लिस ने पाया वस्ल का गंज
भिकारी कूँ दरस का दान पहुँचा
'सिराज' अब घर तिरा रौशन हुआ है
मगर वो शम्अ-रू मेहमान पहुँचा
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