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फ़िदा कर जान अगर जानी यही है - सिराज औरंगाबादी कविता - Darsaal

फ़िदा कर जान अगर जानी यही है

फ़िदा कर जान अगर जानी यही है

अरे दिल वक़्त-ए-बे-जानी यही है

यही क़ब्र-ए-ज़ुलेख़ा सीं है आवाज़

अगर है यूसुफ़-ए-सानी यही है

नहीं बुझती है प्यास आँसू सीं लेकिन

करें क्या अब तो याँ पानी यही है

किसी आशिक़ के मरने का नहीं तरस

मगर याँ की मुसलमानी यही है

बिरह का जान कंदन है निपट सख़्त

शिताब आ मुश्किल आसानी यही है

पिरो तार-ए-पलक में दाना-ए-अश्क

कि तस्बीह-ए-सुलैमानी यही है

मुझे ज़ालिम ने गिर्यां देख बोला

कि इस आलम में तूफ़ानी यही है

ज़मीं पर यार का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा

हमारा ख़त्त-ए-पेशानी यही है

वो ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन लगती नहीं हात

मुझे सारी परेशानी यही है

न फिरना जान देना उस गली में

दिल-ए-बे-जान की बानी यही है

किया रौशन चराग़-ए-दिल कूँ मेरे

'सिराज' अब फ़ज़्ल-ए-रहमानी यही है

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In Hindi By Famous Poet Siraj Aurangabadi. is written by Siraj Aurangabadi. Complete Poem in Hindi by Siraj Aurangabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.