दिल में जब आ के इश्क़ ने तेरे महल किया
दिल में जब आ के इश्क़ ने तेरे महल किया
सब दस्त-ओ-पा-ए-अक़्ल कूँ यक पल में शल किया
इस ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन सीं सनम खोल कर गिरह
आशिक़ के दिल के उक़्दा-ए-मुश्किल कूँ हल किया
सैर-ए-चमन कूँ जब कि हुआ लाला-रू सवार
राज़-ओ-नियाज़-ए-बुलबुल-ओ-गुल में ख़लल किया
अक़्लीम-ए-दिल सीं अक़्ल ने ली तब रह-ए-गुरेज़
जब सूबा-दार-ए-इश्क़ ने आ कर अमल किया
मज्लिस में आशिक़ों की जब आया वो शम्अ-रू
महजूब हो के शम्अ ने सूरत बदल किया
ऐ शोख़-ए-सेहर-कार हर यक बुल-फ़ुज़ोल कूँ
तीर-ए-निगह ने बिस्मिल-ए-तेग़-ए-अजल किया
देखा है जब सीं मिस्रा-ए-मौज़ूून ओ क़द्द-ए-यार
उस दिन सेती 'सिराज' ने फ़िक्र-ए-ग़ज़ल किया
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