ऐ दिल-ए-बे-अदब उस यार की सौगंद न खा
ऐ दिल-ए-बे-अदब उस यार की सौगंद न खा
तूँ हर इक बात में दिलदार की सौगंद न खा
रूह-ए-चंद्र-बदन ऐ बुल-हवस आज़ुर्दा न कर
ख़ूब नहीं तुर्बत-ए-महयार की सौगंद न खा
ये अदा सर्व में ज़िन्हार नहीं ऐ क़ुमरी
यार के क़ामत ओ रफ़्तार की सौगंद न खा
ख़ौफ़ कर ख़त की सियाही सती ऐ वादा-ख़िलाफ़
हर घड़ी मुसहफ़-ए-रुख़्सार की सौगंद न खा
अपनी आँखों की क़सम खा कि लिया नहीं मैं ने
जान ले कर दिल-ए-बीमार की सौगंद न खा
पेच दे दे के मिरे दिल कूँ परेशाँ तो क्या
नाहक़ उस ज़ुल्फ़-ए-गिरह-दार की सौगंद न खा
ताब उस रुख़ की तजल्ली की नहीं तुझ कूँ 'सिराज'
तूँ अबस शोला-ए-दीदार की सौगंद न खा
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