सिराज औरंगाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सिराज औरंगाबादी (page 5)
नाम | सिराज औरंगाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Siraj Aurangabadi |
जन्म की तारीख | 1714 |
मौत की तिथि | 1763 |
जन्म स्थान | Aurangabad |
सुनो तो ख़ूब है टुक कान धर मेरा सुख़न प्यारे
सुने रातों कूँ गर जंगल में मेरे ग़म की वावैला
सीना-साफ़ी की है जिसे ऐनक
सीमाब जल गया तो उसे गर्द बोलिए
शर्बत-ए-वस्ल पिला जा लब-ए-शीरीं की क़सम
सर्व-ए-गुलशन पर सुख़न उस क़द का बाला हो गया
सनम ख़ुश तबईयाँ सीखे हो तुम किन किन ज़रीफ़ों सीं
सनम जब चीरा-ए-ज़र-तार बाँधे
सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम
रिश्ते में तिरी ज़ुल्फ़ के है जान हमारा
क़द तिरा सर्व-ए-रवाँ था मुझे मालूम न था
पुर-ख़ूँ है जिगर लाला-ए-सैराब की सौगंद
पीव के आने का वक़्त आया है
पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो
नयन की पुतली में ऐ सिरीजन तिरा मुबारक मक़ाम दिस्ता
मुस्कुरा कर आशिक़ों पर मेहरबानी कीजिए
मुझ सीं ग़म दस्त-ओ-गरेबाँ न हुआ था सो हुआ
मुझ पर ऐ महरम-ए-जाँ पर्दा-ए-असरार कूँ खोल
मुझ दर्द सें यार आश्ना नईं
मेरे जिगर के दर्द का चारा कब आएगा
मिरा दिल नहीं है मेरे हात तुम बिन
मिरा दिल आ गया झट-पट झपट में
मान मत कर आशिक़-ए-बे-ताब का अरमान मान
मख़मूर चश्मों की तबरीद करने कूँ शबनम है सरदाब शोरों की मानिंद
मज्लिस-ए-ऐश गर्म हो या-रब
मैं न जाना था कि तू यूँ बे-वफ़ा हो जाएगा
माइल हूँ गुल-बदन का मुझे गुल सीं क्या ग़रज़
महरम-ए-दिल हुआ वो सहरा वा
क्यूँ तिरे गेसू कूँ गेसू बोलनाँ
क्या बला सेहर हैं सजन के नयन