सिराज औरंगाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सिराज औरंगाबादी (page 2)
नाम | सिराज औरंगाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Siraj Aurangabadi |
जन्म की तारीख | 1714 |
मौत की तिथि | 1763 |
जन्म स्थान | Aurangabad |
नहीं बख़्शी है कैफ़िय्यत नसीहत ख़ुश्क ज़ाहिद की
न मिले जब तलक विसाल उस का
मुवाफ़क़त करे क्यूँ मय-कशों सती ज़ाहिद
मुस्तइद हूँ तिरे ज़ुल्फ़ों की सियाही ले कर
मुश्ताक़ हूँ तुझ लब की फ़साहत का व-लेकिन
मुझ रंग ज़र्द ऊपर ग़ुस्से सीं लाल मत हो
मुझ कूँ हर आन तिरे दर्द सीं बहबूदी है
मुफ़्ती-ए-नाज़ ने दिया फ़तवा
मिरे सीं दूर क्या चाहते हैं साया-ए-इश्क़
मत करो शम्अ को बदनाम जलाती वो नहीं
मस्जिद वहशत में पढ़ता है तरावीह-ए-जुनूँ
मस्जिद में तुझ भँवों की ऐ क़िबला-ए-दिल-ओ-जाँ
मस्जिद अबरू में तेरी मर्दुमुक है जिऊँ इमाम
मरहम तिरे विसाल का लाज़िम है ऐ सनम
मकतब-ए-इश्क़ का मोअल्लिम हूँ
मकतब में मिरे जुनूँ के मजनूँ
मैं कहा क्या अरक़ है तुझ रुख़ पर
मैं हूँ तो दिवाना प किसी ज़ुल्फ़ का नहीं हूँ
क्यूँकि होवे ज़ाहिद ख़ुद-बीं मुरीद-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
क्या पूछते हो तुम कि तिरा दिल किधर गया
क्या होएगा सुनोगे अगर कान धर के तुम
कुफ़्र-ओ-ईमाँ दो नदी हैं इश्क़ कीं
किया ख़ाक आतिश-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बे-नवा-ए-'सिराज' कूँ
किया है जब सीं अमल बे-ख़ुदी के हाकिम ने
खुल गए उस की ज़ुल्फ़ के देखे
ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही
कान में है तेरे मोती आब-दार
कहते हैं तिरी ज़ुल्फ़ कूँ देख अहल-ए-शरीअत
कचेहरी में चमन की हर तरफ़ फ़रियाद बुलबुल है
कभी तुम मोम हो जाते हो जब मैं गर्म होता हूँ