वो इतनी शिद्दतों से सोचता है
कि जैसे मैं भी कोई मसअला हूँ
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कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है
बिखरते टूटते लम्हों में ऐसा लगता है
ज़मीं पे रहते हुए कहकशाँ से मिलते हैं
दिल में रह रह के शोर उठता है
ज़िंदगी तुझ से प्यार क्या करते
कोई शिकवा कोई गिला दे दे
इतना न दूर जाओ कि जीना मुहाल हो
बहुत उदास है दिल जाने माजरा क्या है
कहाँ तलक तिरी यादों से तख़लिया कर लें
ख़ुद को बचाऊँ जिस्म सँभालूँ कि रूह को
सदा-ए-दिल को कहीं बारयाब होना था
दिल में तूफ़ान नहीं आँख में सैलाब नहीं