क्या हमसरी की हम से तमन्ना करे कोई
हम ख़ुद भी अपने क़द के बराबर न हो सके
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बेवफ़ाई का मुझे इल्ज़ाम देता था वो शख़्स
कहाँ तलक तिरी यादों से तख़लिया कर लें
वो इतनी शिद्दतों से सोचता है
कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है
सदा-ए-दिल को कहीं बारयाब होना था
दिल में रह रह के शोर उठता है
बिखरते टूटते लम्हों में ऐसा लगता है
ज़िंदगी तुझ से प्यार क्या करते
कोई शिकवा कोई गिला दे दे
इतना न दूर जाओ कि जीना मुहाल हो
दिल में तूफ़ान नहीं आँख में सैलाब नहीं