ख़ुद को बचाऊँ जिस्म सँभालूँ कि रूह को
बिखरा हुआ है दर्द यहाँ से वहाँ तलक
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कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है
दिल में तूफ़ान नहीं आँख में सैलाब नहीं
बिखरते टूटते लम्हों में ऐसा लगता है
ज़मीं पे रहते हुए कहकशाँ से मिलते हैं
दिल में रह रह के शोर उठता है
बहुत उदास है दिल जाने माजरा क्या है
कोई शिकवा कोई गिला दे दे
ज़िंदगी तुझ से प्यार क्या करते
क्या हमसरी की हम से तमन्ना करे कोई
सदा-ए-दिल को कहीं बारयाब होना था
वो इतनी शिद्दतों से सोचता है