इतना न दूर जाओ कि जीना मुहाल हो
यूँ भी न पास आओ कि दम ही निकल पड़े
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दिल में तूफ़ान नहीं आँख में सैलाब नहीं
ज़मीं पे रहते हुए कहकशाँ से मिलते हैं
कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है
कोई शिकवा कोई गिला दे दे
तोड़े बग़ैर संग तराशे न जाएँगे
ज़िंदगी तुझ से प्यार क्या करते
बिखरते टूटते लम्हों में ऐसा लगता है
ख़ुद को बचाऊँ जिस्म सँभालूँ कि रूह को
दिल में रह रह के शोर उठता है
क्या हमसरी की हम से तमन्ना करे कोई
बेवफ़ाई का मुझे इल्ज़ाम देता था वो शख़्स