दिल में तूफ़ान नहीं आँख में सैलाब नहीं
ऐसे जीने से तो बेहतर था कि मर ही जाते
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क्या हमसरी की हम से तमन्ना करे कोई
ज़िंदगी तुझ से प्यार क्या करते
ख़ुद को बचाऊँ जिस्म सँभालूँ कि रूह को
कोई शिकवा कोई गिला दे दे
कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है
बेवफ़ाई का मुझे इल्ज़ाम देता था वो शख़्स
तोड़े बग़ैर संग तराशे न जाएँगे
कहाँ तलक तिरी यादों से तख़लिया कर लें
दिल में रह रह के शोर उठता है
सदा-ए-दिल को कहीं बारयाब होना था
इतना न दूर जाओ कि जीना मुहाल हो