वीराँ बहुत है ख़्वाब-महल जागते रहो

वीराँ बहुत है ख़्वाब-महल जागते रहो

हम-साए में खड़ी है अजल जागते रहो

जिस पर निसार नर्गिस-ए-शहला की तमकेनत

वो आँख इस घड़ी है सजल जागते रहो

ये लम्हा-ए-उमीद भी है वक़्त-ए-ख़ौफ़ भी

हासिल न होगा इस का बदल जागते रहो

जिन बाज़ुओं पे चारागरी का मदार था

वो तो कभी के हो गए शल जागते रहो

ज़ेहनों में था इरादा-ए-शब-ख़ून कल तलक

अब हो रहा है रू-ब-अमल जागते रहो

जिस रात में न हिज्र हो ने वस्ल 'अजमली'

उस रात में कहाँ की ग़ज़ल जागते रहो

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In Hindi By Famous Poet Siraj Ajmali. is written by Siraj Ajmali. Complete Poem in Hindi by Siraj Ajmali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.