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फिर सूरज ने शहर पे अपने क़हर का यूँ आग़ाज़ किया - सिराज अजमली कविता - Darsaal

फिर सूरज ने शहर पे अपने क़हर का यूँ आग़ाज़ किया

फिर सूरज ने शहर पे अपने क़हर का यूँ आग़ाज़ किया

जिन जिन के लम्बे दामन थे उन का इफ़्शा राज़ किया

ज़हर-ए-नसीहत तीर-ए-मलामत दरस-ए-हक़ीक़त सब ने दिए

एक वही था जिस ने मेरी हर आदत पर नाज़ किया

नक़्द-ए-तअल्लुक़ ख़ूब कमाया लेकिन ख़र्च अरे तौबा

ये तो बताओ कल की ख़ातिर क्या कुछ पस-अंदाज़ किया

शहर में इस कैफ़ियत का है कौन मुहर्रिक कुछ तो कहो

जिस कैफ़ियत ने तुम को दीवानों में मुम्ताज़ किया

कू-ए-मलामत के बाशिंदे तुम को सज्दा करते हैं

किस ने इस बस्ती में आख़िर ऐसे सर-अफ़राज़ किया

देहली में रहना है अगर तो तर्ज़-ए-मीर ज़रूरी है

उस ने भी तो इश्क़ किया फिर याँ रहना आग़ाज़ किया

पहले उड़ने की दावत दी ता-हद्द-ए-इम्कान 'सिराज'

फिर जाने क्यूँ ख़ुद ही उस ने क़त्अ पर-ए-परवाज़ किया

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In Hindi By Famous Poet Siraj Ajmali. is written by Siraj Ajmali. Complete Poem in Hindi by Siraj Ajmali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.