दिल की बस्ती अजीब बस्ती है
ये उजड़ने के बा'द बस्ती है
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जाने वाले कभी नहीं आते
हज़ार नक़्स हैं मुझ में मिरे कमाल को देख
जब वो मसरूर नज़र आता है
बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
शमीम ज़ुल्फ़-ए-यार आए न आए
नज़र नीची है यार-ए-ख़ुश-नज़र की
हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है
बयाबानों पे ज़िंदानों पे वीरानों पे क्या गुज़री
जिन की आँखों में था सुरूर-ए-ग़ज़ल
देर से आ रही है याद तिरी
होश ओ ख़िरद से बेगाना बन जा
तमीज़-ए-ख़्वाब-ओ-हक़ीक़त है शर्त-ए-बेदारी