बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
ख़िज़ाँ के दौर में दिलकश गुलिस्तानों पे क्या गुज़री
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Allama Iqbal
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(545) Peoples Rate This
ख़ुश-जमालों की याद आती है
शौक़ की नुक्ता-दानियाँ न गईं
अहल-ए-हिम्मत को बलाओं पे हँसी आती है
होश ओ ख़िरद से बेगाना बन जा
बयाबानों पे ज़िंदानों पे वीरानों पे क्या गुज़री
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है
तिरे आते ही सब दुनिया जवाँ मालूम होती है
जिन की आँखों में था सुरूर-ए-ग़ज़ल
तमीज़-ए-ख़्वाब-ओ-हक़ीक़त है शर्त-ए-बेदारी
हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है
शमीम ज़ुल्फ़-ए-यार आए न आए
रंग लाया दिवाना-पन मेरा