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जनम-कदे में ना-जाएज़ आँखें - सिदरा सहर इमरान कविता - Darsaal

जनम-कदे में ना-जाएज़ आँखें

मैं टेढ़ी पस्ली का गुस्ताख़ जनम हूँ

जिस के हल्क़ों में बद-तहज़ीब चीख़ों का हुजूम

बग़ैर इत्तिलाअ' दिए

नक़्क़ारा-ए-बे-अमाँ का राग अलापता है

फूँकता है आँख आँख में

धुआँ अध-जले तअ'ल्लुक़ात का

मुझे पथरीले एहसास के पंघोड़ों में खिलाया गया

सिखाई गई बे-तरतीब ज़िंदगी की बंदर-बाँट

क़ल्लाश लोगों के दरमियान

फेंका गया बे-ध्यानी से

कौन जाने

ज़िंदगी की उठा-पटख़ मैं कितने आबगीने चकना-चूर हुए

किस ने मक़रूज़ दस्तारों पे उठा रखा है

पैरों में रौंदी हुई

जन्नत का अज़ाब

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In Hindi By Famous Poet Sidra Sahar Imran. is written by Sidra Sahar Imran. Complete Poem in Hindi by Sidra Sahar Imran. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.