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सफ़र की धूप ने चेहरा उजाल रक्खा था - सिदरा सहर इमरान कविता - Darsaal

सफ़र की धूप ने चेहरा उजाल रक्खा था

सफ़र की धूप ने चेहरा उजाल रक्खा था

वो मर गया तो सिरहाने विसाल रक्खा था

हसीन चेहरे कशीदा किए थे मिट्टी से

बला का ख़ाक में हुस्न ओ जमाल रक्खा था

वो हाशियों में तिरे सुर्मगीं मोहब्बत थी

कि आइनों में कोई अक्स डाल रक्खा था

फ़लक की साँस उखड़ने लगी तो राज़ खुला

कि आसमाँ को ज़मीं ने संभाल रक्खा था

तिरा उरूज था सूरज के मांद पड़ने तक

मिरे नसीब में शब सा ज़वाल रक्खा था

हिसार-ए-ख़्वाब से बाहर कभी निकल न सकूँ

बिछा के राह में पलकों का जाल रक्खा था

वो एक शख़्स जो वक़्त-ए-ज़वाल मुझ से मिला

सुनहरी आँखों में उस की मलाल रक्खा था

किसी को सहरा-नवर्दी से इश्क़ लाहक़ था

किसी को शौक़ ने घर से निकाल रक्खा था

उसी ने ज़हर उंडेला है मेरी नस नस में

जो आस्तीन में इक साँप पाल रक्खा था

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In Hindi By Famous Poet Sidra Sahar Imran. is written by Sidra Sahar Imran. Complete Poem in Hindi by Sidra Sahar Imran. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.