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असबाब-ए-हस्त रह में लुटाना पड़ा मुझे - सिदरा सहर इमरान कविता - Darsaal

असबाब-ए-हस्त रह में लुटाना पड़ा मुझे

असबाब-ए-हस्त रह में लुटाना पड़ा मुझे

फिर ख़ाली हाथ दहर से जाना पड़ा मुझे

सब लोग तेरे शहर के माज़ी-परस्त थे

मुश्किल से हाल में उन्हें लाना पड़ा मुझे

पहले बनाए आँख में ख़्वाबों के मक़बरे

फिर हसरतों को दिल में दबाना पड़ा मुझे

मुझ को तो ख़ैर ख़ाना-बदोशी ही रास थी

तेरे लिए मकान बनाना पड़ा मुझे

कुछ और जब रहा न ज़रिया मआश का

काँधों पे बार-ए-इश्क़ उठाना पड़ा मुझे

दुनिया ये घूमती रहे परकार की तरह

इक दाएरा ज़मीं पे बनाना पड़ा मुझे

इक दिन ये जी में आई वो आँखें ही फोड़ दूँ

जिन के लिए अज़ाब उठाना पड़ा मुझे

अपने मुआमले में ही शिद्दत-पसंद थी

अपने लिए ही जान से जाना पड़ा मुझे

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In Hindi By Famous Poet Sidra Sahar Imran. is written by Sidra Sahar Imran. Complete Poem in Hindi by Sidra Sahar Imran. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.