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सिदरा सहर इमरान Ghazal In Hindi - Best सिदरा सहर इमरान Ghazal Shayari & Poems - Darsaal

Ghazals of Sidra Sahar Imran

Ghazals of Sidra Sahar Imran
नामसिदरा सहर इमरान
अंग्रेज़ी नामSidra Sahar Imran

वो सर्द धूप रेत समुंदर कहाँ गया

तू हर्फ़-ए-आख़िरी मिरा क़िस्सा तमाम है

सफ़र की धूप ने चेहरा उजाल रक्खा था

सफ़र के बीच वो बोला कि अपने घर जाऊँ

लकड़ी की दो मेज़ें हैं इक लोहे की अलमारी है

जागते दिन की गली में रात आँखें मल रही है

ग़मगीन बे-मज़ा बड़ी तन्हा उदास है

बे-ख़याली में कहा था कि शनासाई नहीं

असबाब-ए-हस्त रह में लुटाना पड़ा मुझे

अपनी आँखों को अक़ीदत से लगा के रख ली

आसमाँ एक किनारे से उठा सकती हूँ

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