हमारे नाम लिखी जा चुकी थी रुस्वाई
हमें तो होना था यूँ भी ख़राब चारों तरफ़
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न कोई नक़्श न पैकर सराब चारों तरफ़
दिल ही गिर्दाब-ए-तमन्ना है यहीं डूबते हैं
अब यही बेहतर है नक़्श-ए-आब होने दे मुझे
नाख़ुदा हो कि ख़ुदा देखते रह जाते हैं
दिल-ए-आईना-सामाँ पारा पारा कर के देखा जाए
आरज़ू जीने की थी इम्कान जीने का न था
अजब पागल है दिल कार-ए-जहाँ बानी में रहता है
वही रंग-ए-रुख़ पे मलाल था ये पता न था
मैं ने हँसने की अज़िय्यत झेल ली रोया नहीं
होंटों पे सुख़न आँखों में नम भी नहीं अब के
भूली-बिसरी बात है लेकिन अब तक भूल न पाए हम
मैं वो टूटा हुआ तारा जिसे महफ़िल न रास आई