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वही रंग-ए-रुख़ पे मलाल था ये पता न था - सिद्दीक़ मुजीबी कविता - Darsaal

वही रंग-ए-रुख़ पे मलाल था ये पता न था

वही रंग-ए-रुख़ पे मलाल था ये पता न था

मिरा ग़म भी शामिल-ए-हाल था ये पता न था

वही शाम आख़िरी शाम थी ये ख़बर न थी

वही वक़्त वक़्त-ए-ज़वाल था ये पता न था

मुझे कर गया जो तही तही भरे शहर में

वो मिरा ही दस्त-ए-सवाल था ये पता न था

मुझे बुत बना के चले गए कि न रो सकूँ

उन्हें मेरा इतना ख़याल था ये पता न था

वो हवा-ए-मर्ग थी जिस से दिल का दिया बुझा

मिरे दिल का बुझना कमाल था ये पता न था

मैं 'मुजीबी' ढूँडूँ कहाँ उसे वो कहाँ मिले

वो तो आप अपनी मिसाल था ये पता न था

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In Hindi By Famous Poet Siddique Mujibi. is written by Siddique Mujibi. Complete Poem in Hindi by Siddique Mujibi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.