एक बे-मंज़र उदासी चार-सू आँखों में है
एक बे-मंज़र उदासी चार-सू आँखों में है
जितना बाक़ी है मिरे दिल का लहू आँखों में है
जिस्म-ओ-जाँ पामाल-ए-सदमात-ए-तग़ाफ़ुल हो चुके
अब तो जो है मावरा-ए-गुफ़्तुगू आँखों में है
ख़त्म होता ही नहीं बेदार लम्हों का अज़ाब
नींद जैसे कोई ज़ख़्म-ए-बे-रफ़ू आँखों में है
तिश्नगी का इक परिंदा चीख़ता है ज़ेहन में
क़र्या-ए-जाँ की ये कैसी आब-जू आँखों में है
बहते अश्कों पर लिखी तहरीर रौशन है अभी
एक वा'दा एक पैकर हू-ब-हू आँखों में है
मैं बयाबाँ की बिखरती धूप हूँ बे-सम्त-ओ-सौत
अब कोई सौदा है सर में और न तू आँखों में है
किस तरफ़ देखूँ 'मुजीबी' किस से रिश्ता जोड़ लूँ
रू-ब-रू दुनिया है फिर भी दश्त-ए-हू आँखों में है
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