एक बे-मंज़र उदासी चार-सू आँखों में है

एक बे-मंज़र उदासी चार-सू आँखों में है

जितना बाक़ी है मिरे दिल का लहू आँखों में है

जिस्म-ओ-जाँ पामाल-ए-सदमात-ए-तग़ाफ़ुल हो चुके

अब तो जो है मावरा-ए-गुफ़्तुगू आँखों में है

ख़त्म होता ही नहीं बेदार लम्हों का अज़ाब

नींद जैसे कोई ज़ख़्म-ए-बे-रफ़ू आँखों में है

तिश्नगी का इक परिंदा चीख़ता है ज़ेहन में

क़र्या-ए-जाँ की ये कैसी आब-जू आँखों में है

बहते अश्कों पर लिखी तहरीर रौशन है अभी

एक वा'दा एक पैकर हू-ब-हू आँखों में है

मैं बयाबाँ की बिखरती धूप हूँ बे-सम्त-ओ-सौत

अब कोई सौदा है सर में और न तू आँखों में है

किस तरफ़ देखूँ 'मुजीबी' किस से रिश्ता जोड़ लूँ

रू-ब-रू दुनिया है फिर भी दश्त-ए-हू आँखों में है

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In Hindi By Famous Poet Siddique Mujibi. is written by Siddique Mujibi. Complete Poem in Hindi by Siddique Mujibi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.