दिल-ए-आईना-सामाँ पारा पारा कर के देखा जाए
दिल-ए-आईना-सामाँ पारा पारा कर के देखा जाए
सितारों को कभी महव-ए-नज़ारा कर के देखा जाए
कभी ता-देर शबनम तख़्त-ए-गुल पर भी नहीं रहती
अमीर-ए-शहर को इतना इशारा कर के देखा जाए
चमकता है सर-ए-मिज़्गान-ए-नम जो टूट कर दिल से
चलो उस अश्क-ए-ख़ूनी को सितारा कर के देखा जाए
हरी काँटों-भरी बेलें मिरी साँसों से लिपटी हैं
अज़िय्यत ही सही कुछ दिन गुज़ारा कर के देखा जाए
कहाँ फ़ुर्सत फ़रिश्तों सी कि हम ये दर्द-ए-सर मोलें
हिसाब-ए-दोस्ताँ को गोश्वारा कर के देखा जाए
हमें दिल जीतने का फ़न तो आता है मगर सोचा
कभी ऐसा भी हो अपना ख़सारा कर के देखा जाए
न जाने कितने आलम हैं 'मुजीबी' एक आलम में
अगर दुनिया को दुनिया से किनारा कर के देखा जाए
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