Ghazals of Siddique Mujibi

Ghazals of Siddique Mujibi
नामसिद्दीक़ मुजीबी
अंग्रेज़ी नामSiddique Mujibi
जन्म की तारीख1931
मौत की तिथि2014
जन्म स्थानRanchi

ज़बान-ए-ख़ल्क़ को चुप आस्तीं को तर पा कर

वही रंग-ए-रुख़ पे मलाल था ये पता न था

उस ने सोचा भी नहीं था कभी ऐसा होगा

उसे यक़ीन न आया मिरी कहानी पर

शरीक-ए-ग़म कोई कब मो'तबर निकलता है

रात हुई फिर हम से इक नादानी थोड़ी सी

प्यासा जो मेरे ख़ूँ का हुआ था सो ख़्वाब था

नैरंग-ए-जहाँ रंग-ए-तमाशा है तो क्या है

न पूछ मर्ग-ए-शनासाई का सबब क्या है

न कोई नक़्श न पैकर सराब चारों तरफ़

मिरे चेहरे से ग़म आँखों से हैरानी न जाएगी

मौज-ए-ख़याल-ए-यार ग़म-ए-आसार आई है

मैं भी आवारा हूँ तेरे सात आवारा हवा

होंटों पे सुख़न आँखों में नम भी नहीं अब के

एक बे-मंज़र उदासी चार-सू आँखों में है

दिल-ए-आईना-सामाँ पारा पारा कर के देखा जाए

दिल ही गिर्दाब-ए-तमन्ना है यहीं डूबते हैं

बिखरती टूटती शब का सितारा रख लिया मैं ने

भूली-बिसरी बात है लेकिन अब तक भूल न पाए हम

बे-कराँ समझा था ख़ुद को कैसे नादानों में था

बस एक बूँद थी औराक़-ए-जाँ में फैल गई

अपने सीने को मिरे ज़ख़्मों से भरने वाली

अजीब धुँद है आँखों को सूझता भी नहीं

अजब पागल है दिल कार-ए-जहाँ बानी में रहता है

अब यही बेहतर है नक़्श-ए-आब होने दे मुझे

आरज़ू जीने की थी इम्कान जीने का न था

आग देखूँ कभी जलता हुआ बिस्तर देखूँ

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