हवा चली तो पसीना रगों में बैठ गया
हवा चली तो पसीना रगों में बैठ गया
नमी का ज़हर शजर की जड़ों में बैठ गया
उदास क्यूँ न हों अब तेरे क़ुर्ब की सुब्हें
शब-ए-फ़िराक़ का डर सा दिलों में बैठ गया
अभी फ़ज़ाओं में बर्क़-ए-सदा ही कौंदी थी
ज़माना ख़ौफ़ के मारे घरों में बैठ गया
न काम आ सकी आ'ज़ा की चार-दीवारी
मकाँ बदन का ज़मीं की तहों में बैठ गया
उमीद-ओ-बीम के साए हैं जिस तरफ़ देखूँ
मैं चलते चलते ये किन जंगलों में बैठ गया
हवा का सामना पत्ते ग़रीब क्या करते
खड़ा दरख़्त भी तेज़ आँधियों में बैठ गया
बरस पड़ीं मिरे सर पर सियाहियाँ 'सिद्दीक़'
सहर का रूप-नगर ज़ुल्मतों में बैठ गया
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