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आ रही थी बंद कलियों के चटकने की सदा - सिद्दीक़ अफ़ग़ानी कविता - Darsaal

आ रही थी बंद कलियों के चटकने की सदा

आ रही थी बंद कलियों के चटकने की सदा

मैं सरापा गोश हो कर रात भर सुनता रहा

बह गया ज़ुल्मात के सैलाब में ऐवान-ए-संग

धूप जब निकली तमाज़त से समुंदर जल उठा

जब रग-ओ-पै में सरायत कर रहा था ज़हर-ए-हब्स

रौज़न-ए-दीवार से मुझ पर हँसी ठंडी हवा

सब्ज़ खेतों से कोई सहरा में ले जाए मुझे

मैं हरे सूरज की ताबानी से अंधा हो गया

बन गई ज़ंजीर खुशबू-दार मिट्टी की कशिश

मैं ज़मीं से जब ख़लाओं की तरफ़ जाने लगा

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In Hindi By Famous Poet Siddique Afghani. is written by Siddique Afghani. Complete Poem in Hindi by Siddique Afghani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.