Ghazals of Siddique Afghani
नाम | सिद्दीक़ अफ़ग़ानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Siddique Afghani |
शहर-ए-एहसास में ज़ख़्मों के ख़रीदार बहुत
सहर को धुँद का ख़ेमा जला था
ले उड़े ख़ाक भी सहरा के परस्तार मिरी
झोंका नफ़स का मौजा-ए-सरसर लगा मुझे
जब खुले मुट्ठी तो सब पढ़ लें ख़त-ए-तक़्दीर को
जब ध्यान में वो चाँद सा पैकर उतर गया
हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही
हवा चली तो पसीना रगों में बैठ गया
हर चंद कि प्यारा था मैं सूरज की नज़र का
ग़ाज़ा तो तिरा उतर गया था
बुल-हवस में भी न था वो बुत भी हरजाई न था
आ रही थी बंद कलियों के चटकने की सदा