आग को फूल कहे जाएँ ख़िर्द-मंद अपने

आग को फूल कहे जाएँ ख़िरद-मंद अपने

और आँखों पे रखें दीद के दर बंद अपने

लाख चाहा कि ग़म-ओ-फ़िक्र-ए-जहाँ से छूटें

जामा-ए-दिल पे ये सजते रहे पैवंद अपने

शहर में धूम मचाती रही क्या ताज़ा हवा

हम ने दर वा न किया हम हैं गिला-मंद अपने

सतह-ए-क़िर्तास पे उतरे न तिरी गुल-बदनी

कितने आजिज़ हुए जाते हैं हुनर-मंद अपने

मरहला तय न हुआ अहल-ए-तज़बज़ुब से कोई

जुर्म-ए-तश्कीक से बैठे रहे पाबंद अपने

ऐसा कुछ गर्दिश-ए-दौराँ ने रखा है मसरूफ़

माजरे हो न सके हम से क़लम-बंद अपने

हम तो मर जाते ग़म-ए-हिज्र के हाथों 'शाहिद'

दश्त आफ़ाक़ में होते न अगर चंद अपने

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In Hindi By Famous Poet Siddiq Shahid. is written by Siddiq Shahid. Complete Poem in Hindi by Siddiq Shahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.