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मुद्दतों में घर हमारे आज यार आ ही गया - बाबू सि द्दीक़ निज़ामी कविता - Darsaal

मुद्दतों में घर हमारे आज यार आ ही गया

मुद्दतों में घर हमारे आज यार आ ही गया

ज़ुल्म करता था मगर ज़ालिम को प्यार आ ही गया

हिज्र की रातें कटीं तारे गिने जागा किए

वस्ल के लम्हे मिले आख़िर क़रार आ ही गया

वहम थे मेरी तरफ़ से बद-गुमानी थी उन्हें

मेरी फ़ितरत देख के अब ए'तिबार आ ही गया

मैं ने माना आरज़ी हैं वस्ल की घड़ियाँ मगर

चंद लम्हों के लिए दौर-ए-बहार आ ही गया

हम को पीने से ग़रज़ क्या ये शराब-ए-ज़ाहिरी

इन की नज़रें जब उठीं मुझ को ख़ुमार आ ही गया

ऐ 'निज़ामी' दफ़अ'तन उन की निगाहें उठ गईं

प्यार वो करते न थे बे-इख़्तियार आ ही गया

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In Hindi By Famous Poet Siddiq Ahmad Nizami. is written by Siddiq Ahmad Nizami. Complete Poem in Hindi by Siddiq Ahmad Nizami. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.