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इश्क़ में इज़्तिराब रहता है - बाबू सि द्दीक़ निज़ामी कविता - Darsaal

इश्क़ में इज़्तिराब रहता है

इश्क़ में इज़्तिराब रहता है

जी निहायत ख़राब रहता है

ख़्वाब सा कुछ ख़याल है लेकिन

जान पर इक अज़ाब रहता है

तिश्नगी जी की बढ़ती जाती है

सामने इक सराब रहता है

मरहमत का तिरी शुमार नहीं

दर्द भी बे-हिसाब रहता है

तेरी बातों पे कौन लाए दलील

दिल है सो ला-जवाब रहता है

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In Hindi By Famous Poet Siddiq Ahmad Nizami. is written by Siddiq Ahmad Nizami. Complete Poem in Hindi by Siddiq Ahmad Nizami. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.