जब चली ठंडी हवा बच्चा ठिठुर कर रह गया
माँ ने अपने ला'ल की तख़्ती जला दी रात को
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ज़र्द चेहरों से निकलती रौशनी अच्छी नहीं
जलते जलते बुझ गई इक मोम-बत्ती रात को
दीवार क्या गिरी मिरे ख़स्ता मकान की
आँधी चली तो गर्द से हर चीज़ अट गई
लब-ए-इज़हार पे जब हर्फ़-ए-गवाही आए
हर इक क़दम पे ज़ख़्म नए खाए किस तरह
गाँव गाँव ख़ामोशी सर्द सब अलाव हैं
मल्बूस जब हवा ने बदन से चुरा लिए
मुसाफ़िरों में अभी तल्ख़ियाँ पुरानी हैं
लहू में डूब के तलवार मेरे घर पहुँची