वो हर हर क़दम पर सँभलते हुए
वो हर हर क़दम पर सँभलते हुए
दिलों को मसलते हैं चलते हुए
न अरमाँ को देखा निकलते हुए
न नख़्ल-ए-तमन्ना को फलते हुए
वो किस तरह क़ाबू में आएँ मिरे
क़यामत के पुतले हैं चलते हुए
रही एक अंदाज़ पर चश्म-ए-यार
ज़माने को देखा बदलते हुए
वो कुछ रंग लाएँगे रोज़-ए-विसाल
हिना उन को देखा है मलते हुए
दम-ए-नज़अ' यारब मैं देखूँ उन्हें
वो देखें मिरा दम निकलते हुए
उन्हें ग़ैर से जब न फ़ुर्सत मिली
चले आए हम हाथ मलते हुए
मैं जानूँ कि नाले में है कुछ असर
जो दिल उन का देखूँ पिघलते हुए
वो निकले उधर से तो ऐ 'बर्क़' यूँ
मिरा दिल कफ़-ए-पा से मलते हुए
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