तिरी तस्वीर से रहमत बरसती है गुरु-नानक
तिरी तस्वीर से रहमत बरसती है गुरु-नानक
करे तारीफ़ तेरी किस की हस्ती है गुरु-नानक
हमें उम्मीद है जाती रहेगी तेरी कोशिश से
हमारे मुल्क में जो तंग-दस्ती है गुरु-नानक
मिटाया नक़्श तू ने दहर से बातिल परस्ती का
तिरे दम से ज़ुहूर-ए-हक़ बरसती है गुरु-नानक
मुख़ालिफ़ को तिरे क्यूँकर बुलंदी-ए-मरातिब हो
बग़ावत से नतीजा उस का पस्ती है गुरु-नानक
ख़रीदारी न हो क्यूँकर तिरे बाज़ार-ए-तलक़ीं में
नजात-ओ-मग़फ़िरत की जिंस सस्ती है गुरु-नानक
बनाएगी मुरीदों को तिरे बे-ख़ौफ़ महशर में
शराब-ए-नाब-ए-वहदत से जो मस्ती है गुरु-नानक
हिसाब-ए-रोज़-ए-महशर से नहीं कुछ 'बर्क़' को ख़तरा
जो तेरी याद इस के दिल में बस्ती है गुरु-नानक
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