बादा-ए-इश्क़ से सरशार गुरु-नानक थे
बादा-ए-इश्क़ से सरशार गुरु-नानक थे
आबिद-ओ-ज़ाहिद-ओ-दीं-दार गुरु-नानक थे
रह-ए-तारीक-ए-ज़लालत में पए ख़ल्क़-ए-ख़ुदा
शम्अ-सा मज़हर-ए-अनवार गुरु-नानक थे
हक़-परस्ती के तसव्वुर से हमेशा ख़ुश थे
कुफ़्र और शिर्क से बेज़ार गुरु-नानक थे
तर्बियत ख़ल्क़ की करते थे बड़ी कोशिश से
उस के हर हाल में ग़म-ख़्वार गुरु-नानक थे
अब्र-ए-नैसाँ का ख़वास उन की नसीहत में था
लब-ए-शीरीं से गुहर-बार गुरु-नानक थे
वासिल-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद न होते क्यूँकर
फ़रस-ए-इश्क़ पे असवार गुरु-नानक थे
राह-ए-हक़ में न थे पाबंद किसी मज़हब के
तारिक़-ए-सुबहा-ओ-ज़ुन्नार गुरु-नानक थे
ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से वो बेदार किया करते थे
वाइ'ज़ों में बड़े होशियार गुरु-नानक थे
मद्ह-ख़्वाँ उस का तू हो 'बर्क़' ब-सद इज्ज़-ओ-नियाज़
ख़ाकसारों के मदद-गार गुरु-नानक थे
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