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करता है रहम कौन किसी बे-गुनाह पर - शऊर बलगिरामी कविता - Darsaal

करता है रहम कौन किसी बे-गुनाह पर

करता है रहम कौन किसी बे-गुनाह पर

पड़ते हैं ताज़ियाने यहाँ दाद-ख़्वाह पर

शिकवा है बेवफ़ाई-ए-जानाँ का इस क़दर

हम मर चले हनूज़ न आए वो राह पर

दिल ख़ुद हुआ असीर ज़ख़ंदान-ए-यार में

लाती है तिश्नगी ही प्यासे को चाह पर

शबनम को महव करता है जिस तरह आफ़्ताब

या-रब निगाह-ए-मेहर हो मेरे गुनाह पर

आशिक़ पे रहम कर शह-ए-ख़ूबाँ अगर है तू

वाजिब है शफ़क़त-ए-ग़ुरबा बादशाह पर

वो चेहरा-ए-किताबी है ज़ुल्फ़-ए-दोता में यूँ

मुसहफ़ को जैसे रखते हैं दस्त-ए-गवाह पर

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In Hindi By Famous Poet Shuoor Balgirami. is written by Shuoor Balgirami. Complete Poem in Hindi by Shuoor Balgirami. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.