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जाता है यार सैर को गुलज़ार की तरफ़ - शऊर बलगिरामी कविता - Darsaal

जाता है यार सैर को गुलज़ार की तरफ़

जाता है यार सैर को गुलज़ार की तरफ़

मेरी निगाह है गुल-ए-रुख़्सार की तरफ़

होती है मेरे सामने तस्वीर यार की

जब देखता हूँ मैं दर-ओ-दीवार की तरफ़

या-रब हो ख़ैर आज कि कुछ देखता है वो

मेरी तरफ़ कभी कभी तलवार की तरफ़

करता है क़त्ल आशिक़-ए-मिस्कीं को बज़्म में

दुज़्दीदा देखना तिरा अग़्यार की तरफ़

हसरत है ये मरें भी जो क़ैद-ए-क़फ़स में हम

सय्याद फेंक दे हमें गुलज़ार की तरफ़

चाक-ए-क़फ़स से देख तू ऐ अंदलीब-ए-ज़ार

कुछ लग रही है आग सी गुलज़ार की तरफ़

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In Hindi By Famous Poet Shuoor Balgirami. is written by Shuoor Balgirami. Complete Poem in Hindi by Shuoor Balgirami. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.