ज़लज़ला आया मकाँ गिरने लगा
ज़लज़ला आया मकाँ गिरने लगा
नींद में इक ख़्वाब-दाँ गिरने लगा
बाप की रुख़्सत का लम्हा हाए हाए
इक घनेरा साएबाँ गिरने लगा
वो ज़मीं की और बढ़ता ही रहा
आसमाँ पर आसमाँ गिरने लगा
हाला-ए-ताक़-ए-तलब में दफ़अ'तन
इक चराग़-ए-ख़ुश-गुमाँ गिरने लगा
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