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ये मकीं क्या ये मकाँ सब ला-मकाँ का खेल है - शुजाअत इक़बाल कविता - Darsaal

ये मकीं क्या ये मकाँ सब ला-मकाँ का खेल है

ये मकीं क्या ये मकाँ सब ला-मकाँ का खेल है

इक फ़ुसूँ है ये जहाँ सब आसमाँ का खेल है

मुद्दतों के बा'द कोई हम से ये कह कर मिला

कुछ नहीं ये हिज्र बस आह-ओ-फ़ुग़ाँ का खेल है

आज सूखे फूल जब हम को किताबों में मिले

सोचने पर याद आया बाग़बाँ का खेल है

एक मजनूँ से सर-ए-बाज़ार जब पूछा गया

इश्क़ क्या है तो कहा दोनों-जहाँ का खेल है

साहिलों पर देखते हैं जब तड़पती मछलियाँ

इक सदा आती है ये मौज-ए-रवाँ का खेल है

गर 'सहर' उस को मनाना है तो महव-ए-रक़्स चल

सुन रहे हैं आज रक़्स-ए-दिलबराँ का खेल है

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In Hindi By Famous Poet Shujaat Iqbal. is written by Shujaat Iqbal. Complete Poem in Hindi by Shujaat Iqbal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.