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हूर हो या कोई परी हो तुम - शुजाअत इक़बाल कविता - Darsaal

हूर हो या कोई परी हो तुम

हूर हो या कोई परी हो तुम

कैसे दिल में उतर गई हो तुम

तेरी आँखों में नीले दरिया हैं

मेरे ख़्वाबों की जल-परी हो तुम

ज़िंदगी भी तो आरज़ी ठहरी

कैसे कह दूँ कि ज़िंदगी हो तुम

तुम मिरी नज़्म हो तख़य्युल हो

मेरी उर्दू हो शाइ'री हो तुम

देख जुगनू भी तुम से जलते हैं

चाँद-नगरी की चाँदनी हो तुम

आइना-ख़ाना बन गई आँखें

सामने हू-ब-हू खड़ी हो तुम

मुझ से गोयाई छिन गई मेरी

जब से पत्थर की बन गई हो तुम

आख़िरी बार देख लूँ तुम को

क्या पलट कर भी देखती हो तुम

आज दिल ने तुम्हें बहुत ढूँडा

ऐसे लगता है जा चुकी हो तुम

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In Hindi By Famous Poet Shujaat Iqbal. is written by Shujaat Iqbal. Complete Poem in Hindi by Shujaat Iqbal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.