या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों
या जिन्हें ख़ामोश रहने की सज़ा मालूम है
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उस को न ख़याल आए तो हम मुँह से कहें क्या
जैसा मंज़र मिले गवारा कर
निकाल ज़ात से बाहर निकाल तन्हाई
सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
सातों आलम सर करने के बा'द इक दिन की छुट्टी ले कर
रिंद खड़े हैं मिम्बर मिम्बर
गरचे बादल पानी बरसाता हुआ घर घर फिरा
पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिल्कुल चाहिए
दोस्त का घर और दुश्मन का पता मालूम है
तंगी-ए-हैअत से टकराता हुआ जोश-ए-मवाद
बरपा तिरे विसाल का तूफ़ान हो चुका
'शुजा' मौत से पहले ज़रूर जी लेना