वस्ल हुआ पर दिल में तमन्ना
जैसी थी वैसी रक्खी है
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मिरे हालात को बस यूँ समझ लो
चारागरी की बात किसी और से करो
इसी पर ख़ुश हैं कि इक दूसरे के साथ रहते हैं
पहले हुआ जो करते थे हम वो नहीं रहे
तंगी-ए-हैअत से टकराता हुआ जोश-ए-मवाद
'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में न पड़ जाना
रखते हैं अपने ख़्वाबों को अब तक अज़ीज़ हम
उस बेवफ़ा का शहर है और वक़्त-ए-शाम है
हालत उसे दिल की न दिखाई न ज़बाँ की
ख़ुदा को आज़माना चाहिए था
आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं