उस को न ख़याल आए तो हम मुँह से कहें क्या
वो भी तो मिले हम से हमीं उस से मिलें क्या
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'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में न पड़ जाना
सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
इस तरह पहुँचेगा कैसे पाया-ए-तकमील को
गरचे बादल पानी बरसाता हुआ घर घर फिरा
या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों
निकाल ज़ात से बाहर निकाल तन्हाई
दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ
उस बेवफ़ा का शहर है और वक़्त-ए-शाम है
दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत
मेरा दिल हाथों में लो तो क्या तुम्हारा जाएगा