उस के बयान से हुए हर-दिल-अज़ीज़ हम
ग़म को समझ रहे थे छुपाने की चीज़ हम
Ahmad Faraz
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Jaun Eliya
Gulzar
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दोस्त का घर और दुश्मन का पता मालूम है
सभी ज़िंदगी पे फ़रेफ़्ता कोई मौत पर नहीं शेफ़्ता
औरों से पूछिए तो हक़ीक़त पता चले
घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
हालत उसे दिल की न दिखाई न ज़बाँ की
ख़ुद फ़रिश्ते तो नहीं हैं जो मुझे ले जा रहे हैं
हालात न बदलें तो इसी बात पे रोना
तंगी-ए-हैअत से टकराता हुआ जोश-ए-मवाद
चलो ये तो हादसा हो गया कि वो साएबान नहीं रहा
रखते हैं अपने ख़्वाबों को अब तक अज़ीज़ हम
जैसा मंज़र मिले गवारा कर
या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों